, हाई स्कूल और इंटरमीडिएट शिक्षा बोर्ड, उत्तर प्रदेश में विज्ञानऔर गणित की पढ़ाई की
जो भी लोग ब्रह्माण्ड के बारे में थोड़ी सी भी रूचि रखते हैं उनके दिमाग में यह प्रश्न जरूर आता होगा कि आखिर इस ब्रह्माण्ड के परे क्या है या कहें तो ब्रह्माण्ड के बाहर क्या है? सच यह सवाल देखा जाए तो एक निरर्थक सवाल प्रतीत होता है लेकिन आखिर है तो एक सवाल ही न, तो हर कोई चाहता है कि उसे भी इस सवाल का एक संतोषजनक उत्तर मिलना चाहिए ।
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अगर हम कहें कि ब्रह्माण्ड के बाहर भी ब्रह्माण्ड का ही भाग है तो आपकी समझ से बाहर हो जाएगा जैसे आपसे पुछा जाए सबसे बड़ी संख्या क्या है तो आपका उत्तर होगा अनंत लेकिन जब में कहता हूँ कि अगर अनंत में अगर एक जोड़ दिया जाए तो क्या वह अनंत से भी बड़ी हो जायेगी ? यहाँ भी सवाल सोचने का है यदि हम किसी भी संख्या में एक जोड़ देते हैं तो वह संख्या पिछली वाली से बड़ी हो जाती है लेकिन जब हम अनंत में एक जोड़ते हैं तब वह अनंत से बड़ी क्यों नहीं हो जाती ।
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असल में जब हम अनंत कि बात करते हैं तो एक संख्या भी अनंत का ही हिस्सा हो जाती है अब जब आप किसी भी चीज में जब उसी का ही हिस्सा जोड़ेंगे तो इसका सिर्फ आपको आभास ही हो सकता है कि आप उसमे कुछ अतिरिक्त जोड़ रहे हैं लेकिन असल में आप कुछ जोड़ नहीं रहे होते क्योंकि वह तो उसमें पहले से ही जुड़ा हुआ है ।
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अब ऐसा ही कुछ ब्रह्माण्ड के साथ भी होता है जब हम सोचते हैं कि ब्रह्माण्ड के बाहर क्या है तो हम फिर से यही कर रहे होते हैं क्योंकि बाहर भी ब्रह्माण्ड का ही हिस्सा है । ब्रह्माण्ड की परिभाषा ही यही है कि वह सब कुछ को समेटे हुये है। अगर आप ब्रह्माण्ड को एक बड़ा सा गुब्बारा समझ लें और तारे और ग्रह को उस पर चलते हुए बहुत छोटे सूक्ष्म जीव हैं , यह गुब्बारा लगातार फूलता ही जा रहा है तो अब आप क्या देखते हैं
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गुब्बारा लगातार फूल रहा है तो ऐसे ही ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है और जिस प्रकार उसपर बैठे जीव दुसरे जीवों को अपने से लगातार दूर होते देखेंगे और वह एक दुसरे से जितनी दूर जाएंगे वह उतनी ही तेज गति से एक दुसरे को दूर होते देखेंगे तो अब आप उन सूक्ष्म जीवों को आकाशगंगाएं मन लो तो वह भी ठीक इसी प्रकार एक दुसरे से दूर होती जा रही हैं ।
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अब जिस प्रकार कोई भी गुब्बारे पर चलता हुआ जीव जब अपनी जगह से चलता हुआ एक ही दिशा में यात्रा करे तो एक समय के पश्चात वह वापस उसी स्थान पर लौट आएगा लेकिन जब वह दूसरी बार उसी रास्ते उसी दिशा में यात्रा करेगा तो अबकी बार उसकी दूरी और समय बढ़ जाएगा क्योंकि गुब्बारा लगातार फूलता जा रहा है तो यही बात ब्रह्माण्ड के साथ भी है यहाँ भी आपकी इस गुब्बारे की तरह हर परिक्रमा पिछली परिक्रमा से बड़ी होगी क्योंकि ब्रह्माण्ड का भी लगातार विस्तार हो रहा है।
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लेकिन आप किसी भी दिशा मे यात्रा करने पर आप ब्रह्माण्ड के बाहर नही जा सकते है। यदि आप प्रकाशगति से भी तेज यात्रा करने लगें तब भी आप वापस उसी बिंदु पर जल्दी पहुंच जायेंगे लेकिन ब्रह्माण्ड के बाहर कभी भी नही। तो अब आप समझ गए होंगे की न तो ब्रह्माण्ड का विस्तार किसी में हो रहा है और न ही ब्रह्मांड का कोई छोर है जिससे आप इस ब्रह्माण्ड के बाहर जा सकें ।
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क्या आप कुछ चोंका देने वाले तथ्य दिखा सकते हो?
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